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BY: INEXTLIVE | Updated Date: Thu, 14 Aug 2014 07:01:22 (IST) इलेक्शन जीतने के बाद सेलिब्रिटी बन जाते हैं जनप्रतिनिधि -दर्शन हो जाते हैं दुर्लभ JAMSHEDPUR : हर बार इलेक्शन के दिन पोलिंग बूथ
पर लंबी कतारों में लगकर हम अपने जनप्रतिनिधियों को चुनते हैं। लेकिन एक बार चुन लिए जाने के बाद ये जनता के बीच से यूं गायब होते हैं कि ढूंढे नहीं मिलते। कई बार तो जनता के चुने हुए ये प्रतिनिधि
किसी शासक का रूप लेकर आजादी के इतने सालों बाद भी लोगों को गुलामी का अहसास करवा देते हैं। सेलिब्रिटी बन जाते हैं जनप्रतिनिधि जिस तरह बड़ी-बड़ी सेलिब्रिटी को सिर्फ टीवी और न्यूजपेपर्स में
देखने का मौका मिलता है वैसे ही अपने एमपी, एमएलए के भी दर्शन दुर्लभ हैं। अपनी परेशानियों को लेकर उनसे मिलने का मौका मिलने की बात तो दूर उन्हें सामने से देखने तक का मौका भी नहीं मिलता है। यह
कहना है साकची के मनीष कुमार का। शास्त्री नगर के रहने वाले शुभम ने बताया कि चुनाव से पहले सभी नेता यहां वोट मांगने आते हैं और हमारी परेशानी को दूर करने का वादा करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद
सभी भूल जाते हैं और ऐसे में हमारी परेशानी भी जस की तस बनी रह जाती है। अपने जनप्रतिनिधियों को लेकर सिटी के मैक्सिमम लोगों की कुछ इसी तरह की राय है। जनता और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के बीच
दूरी इतनी बढ़ गई है की वे उनके ऐसे सेलिब्रिटी बन गए हैं, जिनके साथ अपनी परेशानियां बांटनी तो दूर उन्हें सिर्फ दूर से देखकर ही संतोष करना पड़ता है। जनप्रतिनिधि हैं या शासक जनप्रतिनिधि जनता के
सेवक कहे जाते हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आती है। चुनाव के पहले जो उम्मीदवार जनता के सामने हाथ जोड़े वोट मांगते नजर आता है, चुने जाने के बाद उनका रंग पूरी तरह बदल जाता है। हथियारबंद
बॉडीगार्ड्स से घिरे ये सेवक फौरन शासक बन जाते हैं। गोलमुरी के रहने वाले सुबोध कुमार ने कहा की कभी किसी काम को लेकर एमपी या एमएलए से मिलना हो, तो उसके लिए ना जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते
हैं। आजादी के इतने सालों बाद भी हम पूरी तरह आजाद नही हैं। सेवक कहे जाने वाले जनप्रतिनिधि शासक बन जाते हैं। अनुपम लोकसभा और विधानसभा में बैठने वाले लोग सिर्फ नाम के जनप्रतिनिधि बनते जा रहे
हैं। आम लोगों की कोई समस्या हो तो उस वक्त इनका कहीं पता नहीं चलता है। मोनिका चुनाव वक्त के नेता हाथ जोड़कर बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन एक बार सत्ता हाथ में आ गई, उसके बाद कुछ गिने-चुने
लोगों की ही उन तक पहुंच होती है। उस वक्त जनता के पास अपनी समस्याओं को लेकर उनसे मिलने के रास्ते काफी कम रह जाते हैं। प्रह्ललाद कुमार लोग अपने प्रतिनिधियों को इस भरोसे चुनते हैं कि वे हर
सुख-दुख में उनके साथ खड़े रहेंगे, लेकिन ऐसा सही मायनों में करने वाले जनप्रतिनिधि बहुत कम है। रूपम देश की आजादी के बाद शासन पूरे देशवासियों को मिला था, पर कई बार हकीकत कुछ और नजर आती है।
जिन्हें हम जनप्रतिनिधि कहते हैं वे शासक के रूप में नजर आते हैं। सोनम