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-आई नेक्स्ट की तरफ से आयोजित बहस में कॉलेज जाने वाली लड़कियों ने उठाया सवाल -माहौल ऐसा क्यों नहीं देते जिसमें सब अपनी मर्जी से जी सकें, रह सकें -कहा, सारी परंपराएं ढोने का बोझ हम पर ही
क्यों, बात बराबरी की होनी चाहिए ALLAHABD: आधी आबादी को पूरी आजादी की बात तो सभी करते हैं लेकिन मामला हक देने का आता है तो सारी बंदिशें लड़कियों पर थोप दी जाती हैं? ऐसा दोहरा व्यवहार क्यों?
ये आज कह रहे हैं स्कर्ट टॉप को हटाकर सलवार-कमीज को स्कूल ड्रेस कम्पल्सरी कर दिया जाय। कल कहेंगे लड़कियां सिर्फ साड़ी पहनकर घर से निकलें। ऐसा क्यों होना चाहिए। ऐसा करने की मांग करने वाले खुद
या अपनी जैसी सोच रखने वालों को बदलने की पहल क्यों नहीं करते। क्यों नहीं उन्हें मोटीवेट करते कि मां-बहन की तरह ही सड़क पर गुजरने वाली हर लड़की को देखें। लड़कों में संस्कार भरें ताकि वह हर
लड़की को सम्मान देना सीखें। उन्हें भले-बुरे का फर्क समझाएं। आधी आबादी का गुस्सा यह कहना था कॉलेज गोइंग उन गर्ल्स का जो आई नेक्स्ट की तरफ से शनिवार को आयोजित डिबेट का हिस्सा बनीं थीं।
हालांकि उन्होंने भी माना कि मिनी स्कर्ट और टॉप पहनकर पब्लिक प्लेस पर जाने पर ऑड फील होता है लेकिन यह भी कहा कि यदि किसी लड़की को यह पसंद है तो उसे रोका क्यों जाए। आखिर उसकी भी तो कुछ सोच
होती है। उसका अपना ड्रेसिंग सेंस होता है। और एक बार शादी हो जाने के बाद तो वह वैसे भी तमाम बंदिशों में बंध जाती है। ऐसे ड्रेसेज पहनने के बारे में सोच भी नहीं सकती। फिर भी ऐसी सोच कष्ट देने
वाली है। उन्होंने कहा, जब तक आप अपनी सोच नहीं बदलेंगे हमारा ड्रेस बदलने से कुछ नहीं होगा। हमें भी संविधान ने पूरा अधिकार दिया है कि हम अपनी शर्तो पर अपनी लाइफ जी सकें। आखिर कब तक कल्चर के
नाम पर दुहाई दी जाएंगी। तो कल कहेंगे सिर्फ साड़ी पहनें स्कूल गोइंग गर्ल्स के यूनिफार्म के ड्रेस कोड में स्कर्ट को बैन करने के लिए दाखिल की गई याचिका को हाइ कोर्ट के चीफ जस्टिस ने खारिज कर
दिया है। यह एक मुद्दा है, दूसरी तरफ कई स्कूल भी ऐसे हैं जिन्होंने रिट दाखिल करने वालों के विचारों से सहमति जताते हुए लड़कियों के लिए सलवार-कुर्ता अनिवार्य कर दिया है। इससे इस बहस को बल मिला
है। बीए फाइनल इयर की स्टूडेंट श्रेया कहती हैं कि आज आप को गलत लग रहा तो स्कर्ट पर बंदिश लगा के लिए प्रेशर डाल रहे है। कल सलवार कुर्ता खराब लगने लगा तो कहेंगे लड़कियां सिर्फ साड़ी पहनें। ऐसा
क्यों भला। ऐसी हालत में हम गर्ल्स की आजादी कहां रह जाएगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारे पैरेंट्स को जब ऐसी चीजों से दिक्कत नहीं तो किसी दूसरे को क्यों है। हमेशा गर्ल्स को ही हर बात पर
बदलने की बात क्यों की जाती है। प्रियंवदा की राय भी ऐसी ही था। वह भी कहती हैं कि स्कर्ट की हिमायती तो मै भी नहीं हूं। सीनियर क्लासेज में गर्ल्स के ड्रेस कोड ठीक दिखने वाले होने चाहिए। लेकिन,
इसे कंपल्सरी करने की बात तो पूरी तरह गलत है। कोर्ट ने जो फैसला दिया है वो वाकई काबिले तारीफ है। समर्थकों की भी नहीं है कमी किसी भी मुद्दे के पक्ष व विपक्ष दोनो होते हैं। ड्रेस कोड के मुद्दे
पर भी ऐसी ही स्थिति सामने आई। डिबेट के दौरान कई गर्ल्स ने कहा कि कई मायने में ड्रेस कोड की बात करना सही है। स्कूल में गर्ल्स को स्कर्ट व सलवार कुर्ता दोनों को पहनने के लिए परमीशन दे दी
जाएगी तो तो स्कूल का डिसिप्लिन प्रभावित होगा। खास तौर से जहां को-एजुकेशन की व्यवस्था है। जरूरी है कि स्कूल को स्कूल ही रहने दिया जाए। वहां का एडमिनिस्ट्रेशन इन बातों को लेकर ज्यादा अॅवेयर
है। उसे पैरेंट्स के साथ मिलकर डिसाइड करने दें कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं। किसी भी ड्रेस कोड को कंपल्सरी करने से पहले उसके कम्फर्ट को ध्यान में रखना चाहिए। मै सलवार कुर्ता की विरोधी नहीं
हूं। बस इतना कहना है कि इसे ऐसे कंपल्सरी नहीं करना चाहिए। -श्रेया -कंपल्सरी शब्द में तानाशाही जैसी फीलिंग आती है। सलवार-कुर्ता तो हमेशा से गर्ल्स पहनती आई हैं। स्कूलों में इस तरह के फरमान
लागू करने की बात करना ही लोगों का नजरिया गलत होना दर्शाता है। प्रियंवदा -जहां तक बात आज के माहौल की है, तो उसे हम सभी जानते हैं। स्कूलों के ड्रेस कोड पर फैसला लेने का हक स्कूल को ही देना
चाहिए क्योंकि वहां का एडमिनिस्ट्रेशन ज्यादा अॅवेयर है। जरका -लोग अपनी राय दे सकते हैं। लेकिन उसे मानने के लिए प्रेशर बनाना गलत है। सलवार-कुर्ता हमेशा से लोगों की पसंद रहा है। मै खुद भी इसकी
हिमायती हूं। जहां तक मेरी पसंद की बात है तो मैं इसका पूरा समर्थन करती हूं कि सीनियर क्लासेज में गर्ल्स को सलवार कुर्ता ही पहनना चाहिए। उर्मिला शर्मा -स्कर्ट की खिलाफत नहीं करती। लेकिन, कुछ
मायनों में यह फायदेमंद है। सीनियर क्लासेज में इसको लागू करने में कोई बुराई नहीं है। रोशनी कुशवाहा -ये बहस ही क्यों हो रही है। स्कूल जो चाहे वह ड्रेस कोड लागू करे। वहां का मैनेजमेंट जानता है
कि क्या सही है और क्या गलत। इसमें किसी दूसरे को बात करने की जरूरत ही नहीं है। -पूजा चौधरी