संपादकीय: जोखिम की उड़ान

संपादकीय: जोखिम की उड़ान

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जिस दौर में निजी विमान कंपनियों के अलावा खुद सरकार की ओर से भी हवाई यात्रा को सबके लिए सुलभ बनाने का दावा किया जा रहा है, उसमें अगर किसी विमान की उड़ान के दौरान खतरनाक लापरवाही बरतने की घटना


सामने आती है तो यह यात्रियों की सुरक्षा-व्यवस्था सहित सेवाओं पर एक गंभीर सवाल है। गुरुवार को मुंबई से जयपुर जा रहे जेट एअरवेज के विमान में जो हुआ, उससे साफ है कि बहुत सारे दूसरे महकमों में


ड्यूटी के दौरान आम पाई जाने वाली लापरवाही ने अब शायद हवाई यात्राओं में भी पांव पसारने शुरू कर दिए हैं। किसी भी विमान की उड़ान के बारे में यह एक जाना हुआ तथ्य है कि न केवल उसकी तकनीकी, बल्कि


उसमें ड्यूटी पर तैनात सभी कर्मचारियों की हर गतिविधि पूरी तरह निर्धारित और एक तरह से मशीनी होती है। उसमें हर मिनट और यहां तक कि सेकेंड तक के हिसाब से बिना किसी चूक के सभी बातों का ध्यान रखना


पड़ता है। एक बेहद मामूली-सी गलती विमान में सवार सभी लोगों की जान जोखिम में डाल सकती है। जेट एअरवेज की उड़ान के दौरान चालक दल के सदस्य जिस तरह ‘केबिन प्रेशर’ नियंत्रित रखने वाले स्विच को चालू


करना भूल गए, वह किसी बड़े हादसे को न्योता देने से कम नहीं था। गौरतलब है कि किसी भी विमान की उड़ान और उसके दस-बारह हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद भीतर वायु का दबाव और ऑक्सीजन की आपूर्ति


सामान्य बनाए रखने के लिए विशेष व्यवस्था होती है। उसे निर्धारित समय पर चालू करना पड़ता है, ताकि कॉकपिट और केबिन में वायु का दबाव जरूरत के मुताबिक सामान्य रह सके। लेकिन यह हैरानी की बात है कि


विमान के एक खास ऊंचाई पर पहुंचने के बाद चालक दल के सदस्य ने कॉकपिट का स्विच तो चालू कर दिया, लेकिन केबिन वाला स्विच दबाना भूल गया। नतीजतन, अचानक विमान में मौजूद कुल एक सौ छियासठ लोगों का दम


घुटने लगा और तीस लोगों की नाक और कान से खून निकलने लगा। विमान को आपात स्थिति में मुंबई में ही उतारना पड़ा। यह अलग बात है कि लापरवाही की वजह से अब चालक को ड्यूटी से हटा दिया गया है। लेकिन कई


विमानन विशेषज्ञों का कहना है कि अगर विमान अधिक ऊंचाई पर होता और ऐसी नौबत आती तो न केवल केबिन के अंदर वायु का दबाव और कम हो जाता, बल्कि बाहर और भीतर के वायु दबाव में अत्यधित अंतर होने की वजह


से केबिन चटक भी सकता था। जाहिर है, ऐसी स्थिति में विमान हादसे का शिकार होता और उसमें मौजूद सभी लोगों की जान जा सकती थी। पिछले कुछ सालों के दौरान विमानन क्षेत्र में कई निजी कंपनियों के उतरने


के बाद एक तरह की प्रतियोगिता शुरू हो गई है। दूसरी ओर ट्रेनों की लेटलतीफी और फ्लेक्सी या फिर प्रीमियम दरों की वजह से कई बार कुछ जगहों के किराए अपेक्षाकृत कम होने की वजह से बहुत सारे लोग हवाई


यात्रा की ओर आकर्षित हुए हैं। इस क्रम में उड़ानों की तादाद में भी बढ़ोतरी हुई है। विडंबना यह है कि सेवाओं की गुणवत्ता से लेकर हाल के दिनों में कुछ मौकों पर विमान कंपनी के कर्मचारियों के


व्यवहार को लेकर भी शिकायतें सामने आर्इं। लेकिन जेट एअरवेज की ताजा घटना इन सबसे ज्यादा गंभीर है, जो यात्रियों की जिंदगी को खतरे में डालने से जुड़ी है। अगर ऐसी कमियों को दूर नहीं किया जाता है


तो विमानों की बेहतर सेवा देने और उसमें प्रतियोगिता के दावों पर सवाल उठेंगे।