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इसके अलावा विभिन्न शहरों की बड़ी चर्चों में भी इस दिन सभी धर्मों के लोग एकत्रित होकर प्रभु यीशु का ध्यान करते हैं। क्रिसमस की पूर्व संध्या पर लोग प्रभु की प्रशंसा में कैरोल गाते हैं और प्यार
व भाईचारे का संदेश देने एक-दूसरे के घर जाते हैं। दूसरे धर्मों की तरह ही ईसाई धर्म में भी कुछ अलग-अलग संप्रदाय हैं, इसीलिए चर्च भी कई प्रकार के होते हैं। जैसे कैथॉलिक चर्च, आॅर्थोडॉक्स चर्च,
चर्च आॅफ नॉर्थ इंडिया, बैपटिस्ट चर्च या प्रॉटेस्टैन्ट चर्च वगैरह। लेकिन इस वर्गीकरण के बाद भी लगभग प्रत्येक धर्म की तरह ही ईसाई धर्म भी शांति, एकता, दान, प्रेम व भाईचारे की राह दिखता है। यह
त्योहार खुश रहने की और खुशियां बांटने पर केंद्रित होता है। इन सभी गिरजाघरों में क्रिसमस व अन्य कार्यक्रमों में दूसरे धर्म के लोग भी आते हैं और अपने ईसाई मित्रों की खुशी में हिस्सा लेते हैं।
चर्चों में विभिन्न धर्म-गुरु भी आते हैं और आशीर्वाद व शांति संदेश देते हैं। महीने भर पहले से शुरू होने वाली क्रिसमस की तैयारी का उल्लास 6 जनवरी तक चलता है। इस दौरान क्रिसमस जागरण मिस्सा,
निर्दोष बच्चों का पर्व, होली फैमिली त्योहार, नववर्ष और प्रभु प्रकाश पर्व जैसे त्योहार लगातार होते हैं। बेशक अब यह उत्सव किसी एक धर्म का न होकर सबका हो गया है। _क्रिसमस क्यों मनाया जाता है?_
एक बार ईश्वर ने ग्रैबियल नामक अपना एक दूत मैरी नामक युवती के पास भेजा। ईश्वर के दूत ग्रैबियल ने मैरी को जाकर कहा कि उसे ईश्वर के पुत्र को जन्म देना है। यह बात सुनकर मैरी चौंक गई क्योंकि अभी
तो वह कुंवारी थी, सो उसने ग्रैबियल से पूछा कि यह किस प्रकार संभव होगा? तो ग्रैबियल ने कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा। समय बीता और मैरी की शादी जोसेफ नाम के युवक के साथ हो गई। भगवान के दूत
ग्रैबियल जोसेफ के सपने में आए और उससे कहा कि जल्द ही मैरी गर्भवती होगी और उसे उसका खास ध्यान रखना होगा क्योंकि उसकी होने वाली संतान कोई और नहीं स्वयं प्रभु यीशु हैं। उस समय जोसेफ और मैरी
नाजरथ जोकि वर्तमान में इजराइल का एक भाग है, में रहते थे। उस समय नाजरथ रोमन साम्राज्य का एक हिस्सा होता था। एक बार किसी कारण से जोसेफ और मैरी बैथलेहम में किसी काम से गए, उन दिनों वहां बहुत से
लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं भरी हुई थीं जिससे जोसेफ और मैरी को जगह नहीं मिल पाई। काफी थक-हारने के बाद उन दोनों को एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु
का जन्म हुआ। अस्तबल के निकट कुछ गड़रिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गड़रियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी। गड़रिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन
किया। यीशु जब बड़े हुए तो उन्होंने पूरे गलीलिया में उपदेश दिए और लोगों की हर बीमारी और दुर्बलता को दूर करने का प्रयास किया। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई। यीशु के सद्भावनापूर्ण
कार्यों के कुछ दुश्मन भी थे जिन्होंने अंत में यीशु को काफी यातनाएं दीं और उन्हें सूली पर लटकाकर मार डाला। लेकिन यीशु जीवन पर्यंत मानव कल्याण की दिशा में जुटे रहे, यही नहीं जब उन्हें सूली पर
लटकाया जा रहा था, तब भी वह यही बोले कि हे पिता इन लोगों को क्षमा कर दीजिए क्योंकि ये लोग अज्ञानी हैं। उसके बाद से ही ईसाई लोग 25 दिसंबर यानी यीशु के जन्मदिवस को क्रिसमस के रूप में मनाते हैं।