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भारत के राजनीतिक इतिहास में साल 1984 के आम चुनावों में सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड दर्ज है। कांग्रेस ने उस वक्त 523 लोकसभा सीटों में से 415 पर अकेले जीत दर्ज की थी। ये चुनाव प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी की हत्या के करीब दो महीने बाद हुई थी इसलिए कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर भी थी। एक किताब में खुलासा किया गया है कि कांग्रेस की इस बड़ी जीत के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
(आरएसएस) का भी हाथ था। किताब में कहा गया है कि उस वक्त कांग्रेस और आरएसएस ने हाथ मिलाए थे। राशिद किदवई ने अपनी किताब ’24 अकबर रोड: ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ दि पीपुल बिहाइंड द फॉल एंड द राइज ऑफ द
कॉंग्रेस’ में दावा किया है कि तत्कालीन राजनीतिक जटिलताओं का विवरण अन्य कही नहीं किया गया है, जैसा उन्होंने किया है। उन्होंने तीसरे चैप्टर में लिखा है कि इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद
राजीव गांधी आनन-फानन में दिल्ली लौटे थे। तब एम्स में उनके साथ इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव पी सी अलेक्जेंडर और गांधी परिवार के अन्य विश्वस्त लोग वहां मौजूद थे। वहां राजीव को बताया गया कि
कैबिनेट और पार्टी के लोग उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर बैठाना चाहते हैं। अलेक्जेंडर ने राजीव गांधी को सोनिया से दूर करते हुए कैबिनेट के फैसले से उन्हें अवगत कराया। इसके बाद सोनिया गांधी ने
राजीव को ऐसा करने से मना कर दिया था, बावजूद राजीव गांधी ने यह कहते हुए पार्टी के फैसले को मान लिया कि यह उनकी ड्यूटी है। इसके बाद राजीव गांधी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की राजनीति यहीं से
शुरू होती है। कुछ दिनों बाद आम चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया गया। 24 से 27 दिसंबर, 1984 के बीच देशभर में आम चुनाव तय हो गए। किताब में दावा किया गया है कि राजीव गांधी का चुनाव प्रचार बहुत
ही आक्रामक अंदाज में था। सिखों द्वारा अलग खालिस्तान की मांग को कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाया था। इसके पीछे हिन्दुओं में छिपे असुरक्षा की भावना को व्यापक फलक पर पहुंचाना था। साथ ही यह संदेश
भी देना था कि राजीव गांधी ही हिन्दुओं को पूर्ण सुरक्षा दे सकते हैं। राशिद किदवई के मुताबिक राजीव गांधी ने 25 दिनों के धुआंधार चुनाव प्रचार में कुल 50 हजार किलोमीटर की यात्रा कार और
हेलीकॉप्टर से की थी। उन्होंने दावा किया है कि चुनाव प्रचार के दौरान देश में इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के खिलाफ एक सहानुभूति की लहर चल पड़ी थी। बावजूद इसके राजीव ने हिन्दुत्व कार्ड खेलने
के लिए तत्कालीन आरएसएस प्रमुख बाला साहेब देवराज से हाथ मिलाने की सोच ली थी। किताब में दावा किया गया है कि इन दोनों नेताओं के बीच गुप्त बैठक हुई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि आरएसएस के कैडर
लोकसभा चुनाव में ने बीजेपी को छोड़ कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करने लगे थे। उस समय बीजेपी अपने बाल्यकाल में थी और पहला आम चुनाव लड़ रही थी। आरएसएस प्रमुख की राजीव गांधी से मुलाकात कराने में
नागपुर के तत्कालीन सांसद बनवारी लाल पुरोहित ने बड़ी भूमिका निभाई थी। पुरोहित ने 2007 में इसका खुलासा किया था और कहा था कि आरएसएस ने समर्थन के लिए शर्त रखी थी कि कांग्रेस को अयोध्या में राम
जन्मभूमि का शिलान्यास करने की इजाजत देनी होगी।