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महामारियों का इतिहास सिर्फ तबाही का नहीं रहा बल्कि इनसे दुनिया में सत्ता और उसके विस्तार के कई ऐसे चरण शुरू हुए, जिनका असर आज भी दुनिया की भू-राजानीतिक स्थिति पर दिखाई पड़ता है। मसलन, चौदहवीं
सदी का पांचवा-छठा दशक यूरोप में प्लेग के तांडव का था। इस महामारी के कारण देखते-देखते यूरोप की एक तिहाई आबादी मौत की नींद सो गई। ‘ब्लैक डेथ’ यानी ब्यूबोनिक प्लेग ने यूरोप को तबाह तो खूब किया
लेकिन इसके साथ ही वहां सत्ता में रहे लोगों को अपने साम्राज्यवादी विस्तार के लिए भी प्रेरित किया। प्लेग के कारण हुई मौतों ने खेती-किसानी से लेकर पूरी अर्थव्यवस्था को बदल दिया। मजदूरों की कमी
से पूरे व्यापारिक ढांचे के आगे अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया। नतीजतन खासतौर पर पश्चिमी यूरोप के देशों की सामंतवादी व्यवस्था टूटने लगी। यहीं से लंबी समुद्री यात्राओं के जरिए तलाश शुरू हुई
सस्ते श्रम और जीवन के लिए जरूरी दूसरे साधनों की वैकल्पिक आपूर्ति के ठौर-ठिकाने की। समुद्री सफर के क्षेत्र में यह ‘रणनीतिक निवेश’ का दौर था। महामारी के कारण मौत और मातम के साथ पैदा हुई
साधनहीनता ने यूरोप के लोगों को ग्लोब के दूसरे हिस्सों तक पहुंचने के लिए मजबूर किया। यही विवशता आगे चलकर उपनिवेशवाद के तौर पर सामने आई। इस तरह प्लेग के शोक से निकलकर पश्चिमी यूरोप
साम्राज्यवाद के शिखर तक पहुंच गया। दुनिया में इस तरह का बदलाव परिस्थितियों के कारण हुआ। तत्कालीन हालात ने लोगों को और उस समय के शासकों को ऐसे निर्णय लेने के लिए मजबूर किया। इसकी वजह से
दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव हुआ। संसार का नक्शा ही बदल गया।