उद्भ्रांत की आत्मकथा ‘मैंने जो जिया’ का लोकार्पण

उद्भ्रांत की आत्मकथा ‘मैंने जो जिया’ का लोकार्पण

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पुस्तक मेले में रविवार को अमन प्रकाशन, कानपुर के स्टॉल पर कवि उद्भ्रांत की आत्मकथा ‘मैंने जो जिया’ का लोकार्पण विभूति नारायण राय ने किया। अंग्रेजी साहित्य जहां बेबाक आत्मकथाओं से भरा हुआ है


वहीं आधुनिक हिंदी साहित्य में अभी भी ईमानदार आत्मस्वीकृति की गूंज कम ही सुनाई देती है। कहा जाता है कि एक ईमानदार आत्मकथा अपने-आप में एक बड़े स्कूल की तरह काम करती है। वह एक बड़े वर्ग को एक


वृहत जीवन का निचोड़ दे जाती है, जीवन के पाठ पढ़ा जाती है। आम तौर पर हिंदी का लेखक एक खास छवि का शिकार होता है। शब्दों को सजाते-संवारते वह खुद के चरित्र को प्राकृतिक रूप से सामने लाने में डरने


लगता है। जीवन के एक खास मोड़ पर जब वह सामाजिक पहचान के शिखर पर होता है तो उन पड़ावों, ढलानों को लेकर वह डरने लगता है जहां-जहां वह आज जैसा नहीं था। हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथा जैसी बहुत कम ही


किताबें लिखी गईं हैं जो ‘मैंने जो जिया’ की तरह खुद को बिना किसी आडंबर के पेश करती हैं। आत्मकथा एक ऐसी विधा है जिसमें आपको अपने आडंबर की परतें प्याज के छिलकों की तरह उतारनी पड़ती हैं। जीवन के


सत्तर से ज्यादा बसंत देख चुके उद्भ्रांत ने किसी युवा की तरह सामाजिक वर्जनाओं की परवाह किए बिना खुद को उधेड़ा है। उन्होंने अपने जीवन संघर्ष को बिना रंग-रोगन और साज-सज्जा के पाठको के सामने रखा


है। वक्ताओं ने कहा कि उद्भ्रांत की इस आत्मकथा को पढ़ना एक हिम्मत से गुजरना है। लेखक को यह परवाह नहीं है कि इसके बाद लोग उनसे नफरत करेंगे या उनके प्रति सम्मान बढ़ेगा। यह एक ईमानदार आत्मकथा है,


जो हिंदी पट्टी में अपनी जगह बनाएगी। साहित्य अकादेमी का बहुभाषी रचना पाठ: साहित्य अकादेमी ने मेले में बहुभाषी रचना पाठ का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता उड़िया कवि वासुदेव सुनानी ने की।


अशोक मिश्र ने अपनी हिंदी कहानी हीरा नचनिया का पाठ किया। सुशीला पुरी ने अपनी कुछ प्रेम कविताएं प्रस्तुत कीं। गुरप्रीत वोडेवाल ने पंजाबी में कविताएं पढ़ीं। इरशाद खान सिकंदर ने अपनी गजलें व


नज्में पेश कीं। प्रसिद्ध हिंदी कहानियों का अंग्रेजी अवतार: पुस्तक मेले में रविवार को मासिक पत्रिका हंस ने अपनी सालाना अंग्रेजी पत्रिका ‘हंस’ का लोकार्पण किया। हिंदी में छपी प्रतिनिधि


कहानियों के अंग्रेजी अनुवाद का लोकार्पण वरिष्ठ पत्रकार मार्क टुली, लेखिका मृदुला गर्ग और हंस के संपादक संजय सहाय ने किया। संजय सहाय ने कहा कि मार्क टुली जिस तरह से बिहार का भोजन लिट्टी-चोखा


खाते हैं उससे लगता है कि वे भोजपुरी में सोच भी पाते हैं। मौजूद लोगों ने हंस के इस प्रयास को हिंदी कथा जगत के लिए ऐतिहासिक बताया। मेले में आज: सामयिक प्रकाशन चित्रा मुद्गल का पाठकों से संवाद,


विषय प्रवर्तन करेंगे जितेंद्र श्रीवास्तव व वक्ता होंगे नंद भारद्वाज, महेश दर्पण। दोपहर 12:30 से 1:45 बजे तक। लेखक मंच, हॉल संख्या-12-12ए