ताकि सेहतमंद रहे आपका गुर्दा

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गुर्दा रोग (सीकेडी) पूरी दुनिया में बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सीकेडी मौत का 12वां और विकलांगता का 17वां मुख्य कारण है। पिछले दो दशकों में इसकी दवा और व्यापकता


में काफी वृद्धि देखी गई है। डॉक्टर राममनोहर लोहिया अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के मुखिया डॉक्टर हिमांशु महापात्रा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार इसकी व्यापकता प्रति दस


लाख आबादी पर 785-870 है। अंतिम चरण के किडनी रोग के इलाज (डायलिसिस व प्रत्यारोपण) की आवश्यकता प्रति दस लाख आबादी पर 160-232 है। भारत में हर साल लगभग दो लाख नए मरीज आ रहे हैं। इनमें से 500 से


600 लोगों के गुर्दे बदलने की नौबत आ जाती है। गुर्दे का काम इसका मुख्य काम हमारे शरीर में पैदा होने वाले या पहुंच रहे खराब, अतिरिक्त तरल पदार्थ, कोशिकाओं की ओर से उत्पादित एसिड को निकालना है।


यह हमारे शरीर में पानी, नमक और खनिजों (सोडियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम) के संतुलन को बनाए रखता है। हमारे शरीर में पैदा होने वाले ज्यादातर अपशिष्ट पदार्थों को बाहर करता है। गुर्दे की


बीमारी व इसके खराब होने के कारण डॉक्टर महापात्र ने कहा कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के सेवन से गुर्दे को नुकसान पहुंचता है। पानी कम पीने से बार-बार होने वाला मूत्र संक्रमण व गुर्दे की पथरी


गुर्दे को बीमार बनाते हैं। उन्होंने चीनी व नमक की अधिकता वाले खाद्य पदार्थों से बचने की सलाह दी। अगर रक्त शर्करा का स्तर 180 से अधिक हो जाता है तो गुर्दा मूत्र से चीनी को बाहर निकालना शुरू


कर देता है। इससे पता चलता है कि चीनी नुकसान पहुंचा रही है। ज्यादा मात्रा में रेड मीट नहीं खाने की भी सलाह दी जाती है। रेड मीट शरीर में प्रोटीन का स्तर बढ़ा देता है जो रक्त में एसिड उत्पन्न


करता है। यह एसिड गुर्दे के लिए हानिकारक होता है और एसिडोसिस का कारण बनता है। रक्त खून की जांच में 10 से नीचे जीएफआर गुर्दे फेल होने का संकेत देता है। मधुमेह के साथ जी रहे लगभग एक तिहाई लोग


15 से 20 सालों के बाद गुर्दे की जटिलताओं के भी शिकार होते हैं। अनियंत्रित मधुमेह कई अंगों में बाधा उत्पन्न कर सकता है और गुर्दे सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं। क्या हैं लक्षण महापात्र


ने कहा कि आम तौर से लक्षण शुरू में सामने नहीं आते। बार-बार होने वाले मूत्र से गुर्दे में रक्त प्रवाह प्रभावित होता है। मूत्र का बहाव बाधित होने पर भी समस्या हो सकती है। यदि मरीज का जीएफआर 15


से नीचे चला जाता है तो मितली आ सकती है, मरीज खुजली के साथ थका हुआ और कमजोर महसूस कर सकता है। उस बिंदु तक गुर्दा प्रत्यारोपण या डायलिसिस की आवश्यकता हो सकती है। किन्हें है खतरा, क्या होती है


जटिलता डॉक्टर सुनील प्रकाश ने कहा कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, गुर्दे की असामान्य संरचना और बीमारी के पारिवारिक इतिहास जैसे अंतर्निहित स्थितियों के साथ जी रहे लोग अधिक जोखिम में हैं।


इसके अतिरिक्त, जो लोग धूम्रपान करते हैं, जिनका वजन ज्यादा है वे भी लंबी अवधि में सीकेडी से प्रभावित हो सकते हैं। सीकेडी गंभीर चरण में होने पर शरीर में तरल पदार्थ, इलेक्ट्रोलाइट्स और कचरे के


खतरनाक स्तर का निर्माण हो सकता है। क्या है जांच डॉक्टर केके अग्रवाल का कहना है कि हर जोखिम वाले और 40 साल के व्यक्ति के गुर्दे की बीमारी के लिए जांच की जानी जरूरी है। गुर्दे की क्षति के लिए


एक मूत्र परीक्षण और गुर्दे कितनी अच्छी तरह काम कर रहे हैं, यह मापने के लिए अल्ट्रासाउंड व एक रक्त परीक्षण होता है। मूत्र परीक्षण एल्ब्यूमिन नामक प्रोटीन की जांच के लिए होता है, जिसका गुर्दे


की सामान्य हालत में पता लगाना मुश्किल होता है। खून से जीएफआर (ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट) की जांच की जाती है। जीएफआर गुर्दे की छानने की क्षमता का एक अनुमान है। 10 या 15 से नीचे के जीएफआर को


गुर्दे की विफलता के रूप में देखा जाता है। अपने रक्तचाप की निगरानी करें रक्तचाप गुर्दे की क्षति का सबसे आम कारण है। सामान्य रक्तचाप का स्तर 120 बटा 80 से कम है। 130 बटा 80 से ऊपर होने का मतलब


है उच्च रक्तचाप। खून में शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखें। पोषक आहार लेने के साथ अपने वजन को नियंत्रित रखें। खाने में नमक का सेवन कम से कम करें, रोज 5-6 ग्राम नमक (एक चम्मच के आसपास) से


ज्यादा नहीं लें। रोजाना दो लीटर तक पानी पिएं, अन्य तरल पदार्थ भी भरपूर मात्रा में लें। नियमित रूप से ओवर-द-काउंटर गोलियां न लें। अगर इबुप्रोफेन जैसी दवाएं नियमित रूप से ली जाएं तो गुर्दे को


क्षति हो सकती है। हरी सब्जियों से करें दोस्ती डॉक्टर उमेश गुप्ता ने कहा कि स्वास्थ्य की नियमित जांच के अलावा, दवा और व्यायाम के अनुपालन में सुधार करते हुए हमें यह भी देखना चाहिए कि हम क्या


खाते हैं। ऐसे कई भोजन हैं जिनमें एंटीआॅक्सिडेंट होते हैं। ये एंटी-आॅक्सिडेंट रेडिकल्स से न्यूट्रिलाइज होते हैं और शरीर की रक्षा करते हैं। लहसुन, प्याज, फूलगोभी, पत्तागोभी, सेब, लाल अंगूर,


जैतून का तेल, लाल मिर्च और मछली किडनी की सेहत के लिए अच्छे हैं। लहसुन कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और सूजन घटाता है। प्याज में केक्रसेटिन होता है जो एक शक्तिशाली एंटी-आॅक्सीडेंट है। प्याज में


क्रोमियम भी होता है जो कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के पाचन में मदद करता है। फूलगोभी में इंडोल्स, ग्लूकोसिनोलेट्स और थियोसायनेट्स होते हैं जो लिवर को विषाक्त पदार्थों को बेअसर करने में मदद


करते हैं। गोभी विटामिन सी, फोलेट और फाइबर से भी भरपूर होती है। गोभी और सेब में पोटेशियम कम होता है, इसलिए ये किडनी की बीमारी वाले रोगियों के लिए अच्छा है। सेब में उच्च फाइबर और


एंटी-इंफ्लैमेंट्री कंपाउंड होते हैं।