मलिनता में नहीं लगता मधुमक्खी का मन

मलिनता में नहीं लगता मधुमक्खी का मन

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ईश्वर का ध्यान करते समय मन स्थिर क्यों नहीं होता? मक्खी कभी हलवाई की दुकान में रखी मिठाई पर बैठती है, पर इतने में अगर कोई मैले की टोकरी लेकर सड़क पर से गुजरे तो वह तुरंत मिठाई को छोड़ मैले


पर जा बैठती है। Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तान, रामकृष्ण परमहंसTue, 3 June 2025 08:04 AM Share Follow Us on __ एक किसान ने सारा दिन गन्ने के खेत में पानी सींचने के बाद जाकर देखा कि खेत में


बूंद भर भी पानी नहीं पहुंचा है। खेत में कुछ बड़े-बड़े बिल थे और सारा पानी उन बिलों में से होकर दूसरी ओर बह गया था। इसी प्रकार, जो व्यक्ति मन में विषय-वासना, मान-सम्मान, सुख-सुविधा की


आकांक्षा रखते हुए ईश्वर की उपासना करता है, वह यदि जीवनभर भी नियमित रूप से साधना करता रहे तो भी अंत में यही देखता है कि उसकी सारी साधना उन विषय रूपी बिलों में से बाहर निकल गई है और वह जैसा का


तैसा ही रह गया है। ईश्वर का ध्यान करते समय मन स्थिर क्यों नहीं होता? मक्खी कभी हलवाई की दुकान में रखी मिठाई पर बैठती है, पर इतने में अगर कोई मैले की टोकरी लेकर सड़क पर से गुजरे तो वह तुरंत


मिठाई को छोड़ मैले पर जा बैठती है। परंतु मधुमक्खी सदा फूलों पर ही बैठती है, गंदी चीजों पर कभी नहीं बैठती। संसारी जीव भी, मक्खी की ही तरह, बीच-बीच में क्षणभर भगवद्गीता का स्वाद चखता है, पर


दूसरे ही क्षण उसकी स्वाभाविक विषय-तृष्णा उसे संसार के विषय-भोगों में खींच लाती है। किंतु परमहंस सदा भगवान में तल्लीन रहते हुए भक्ति रस का पान करते हैं। संसारी व्यक्ति में ज्ञानी पुरुषों के


समान ज्ञान और बुद्धि हो सकती है, वह योगियों की तरह कष्ट-क्लेश सह सकता है, और तपस्वी की भांति त्याग कर सकता है, परंतु उसके ये सारे श्रम व्यर्थ ही होते हैं, क्योंकि उसकी शक्तियां गलत दिशा में


प्रवाहित होती हैं, वह अपनी सारी शक्ति नाम-यश और धन कमाने में ही लगाता है, भगवान के लिए नहीं। मैले दर्पण में सूर्य का प्रकाश प्रतिबिंबित नहीं होता, स्वच्छ दर्पण में ही वह प्रतिबिंबित होता है।


माया-मुग्ध, अशुद्ध और अपवित्र हृदयवाले व्यक्ति ईश्वरीय महिमा का प्रकाश नहीं देख पाते, विशुद्ध हृदय व्यक्ति ही उसे देख पाते हैं, इसलिए विशुद्ध बनने का प्रयत्न करो। दूध में अगर उसका दुगुना


पानी मिला हुआ हो तो उसकी खीर बनाने में बहुत समय और अत्यधिक श्रम लगता है। विषयी लोगों के मन में मलिन विषय-वासना और कुविचारों की अत्यधिक मिलावट होने के कारण उसे शुद्ध और पवित्र बनाने के लिए


दीर्घ समय तक कठिन परिश्रम करना पड़ता है।