बाढ़ से घिरा मोड़वारा, सड़कों पर बह रहा पानी

बाढ़ से घिरा मोड़वारा, सड़कों पर बह रहा पानी

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बागमती की बाढ़ से कल्याणपुर प्रखंड के करीब दो दर्जन से अधिक गांव प्रभावित है। इन गांवों के लोगों के घरों और सड़कों पर 4 से 5 फुट पानी बह रहा है। तटबंध और ऊंचे स्थान पर शरण लेने वाले बाढ़


पीड़ितों के पास... हिन्दुस्तान टीम समस्तीपुरTue, 30 July 2019 03:15 PM Share Follow Us on __ बागमती की बाढ़ से कल्याणपुर प्रखंड के करीब दो दर्जन से अधिक गांव प्रभावित है। इन गांवों के लोगों के


घरों और सड़कों पर 4 से 5 फुट पानी बह रहा है। तटबंध और ऊंचे स्थान पर शरण लेने वाले बाढ़ पीड़ितों के पास मौजूद खाने के सभी सामान समाप्त हो चुके हैं। इससे अब इनके समक्ष भोजन की समस्या उत्पन्न हो


गई है। बाढ़ पीड़ितों की स्थिति यह है कि प्रशासन की अनदेखी के कारण इनकी जिंदगी खानाबदोश की तरह बनकर रह गई है। ज्ञात हो कि बागमती नदी के जलस्तर में बढ़ोतरी के कारण तटबंध के निचले इलाके सहित करीब


दो दर्जन से अधिक गांव में बाढ़ का पानी है। घरों में बाढ़ का पानी घुस जाने के कारण और आवागमन का रास्ता अवरुद्ध हो जाने के कारण बाढ़ पीड़ित तटबंध पर शरण लिए हुए हैं। बागमती के बाद के पानी से


गंगोरा, रमजान नगर, सलहा, भराव, नामापुर, कलौंजर, बघला, मलिकौली, तीरा, रजपा, रामदीरी, मोड़वारा, कबरगामा, गोबरसिठ्ठा, कुढ़वा के दो वार्ड सहित करीब दो दर्जन गांव में बाढ़ का पानी घुस गया है वहीं


सैकड़ों लोगों के घरों में बाढ़ का पानी है। इसके कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 13 दिनों से बाढ़ पीड़ित बाढ़ का दंश झेल रहे हैं। सरकारी जमीन या सड़क किनारे झुग्गी झोपड़ी बनाकर


वे अपने परिवार के साथ जीवन बसर कर रहे हैं। बाढ़ का सामना कर रहे बलुआहा तटबंध पर रामदीरी गांव के अरविंद सहनी गोबरसिठ्ठा के विद्यानंद राय ने कहा कि तटबंध पर 13 दिनों से बाढ़ पीड़ित प्लास्टिक का


तंबू बना कर जीवन बसर कर रहे हैं। बाढ़ की विभीषिका के कारण इन बाढ़ पीड़ितों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ज्ञात हो कि वर्ष 2004 में भी बागमती का तटबंध खरसंड में टूटने से भारी तबाही


मची थी। तब जान-माल की काफी क्षति हुई थी। वही बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि अब तक किसी भी प्रकार का सरकारी सुविधा नहीं मिल पाई है। वे दाने-दाने को मोहताज है। मोरवाड़ा के रामसकल राम, अनिल राम,


मोहित राम, कैलाश राम आदि का कहना है कि हम लोग खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं। नाव भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है।