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बौद्ध धर्म के आठ चिह्नों वाली बावन बूटी बुनाई को वैश्विक पहचान मिलेगी। इसके लिए ई-कॉमर्स कंपनी अमेजॉन ने नालंदा के बुनकरों से संपर्क किया है। बुनकरों को प्रशिक्षित करने का काम महिला विकास
निगम कर रहा... बौद्ध धर्म के आठ चिह्नों वाली बावन बूटी बुनाई को वैश्विक पहचान मिलेगी। इसके लिए ई-कॉमर्स कंपनी अमेजॉन ने नालंदा के बुनकरों से संपर्क किया है। बुनकरों को प्रशिक्षित करने का काम
महिला विकास निगम कर रहा है। इस बुनाई कला का काम नालंदा के नेपुरा, खासगंज, मीरगंज, इमादपुर और बसावन बीघा के 80-100 बुनकर परिवार कर रहे हैं। बसावन बीघा के बुनकर कपिल देव प्रसाद बताते हैं कि
पहले सरकारी सुविधा थी। बिहार स्टेट हैंडलूम कॉरपोरेशन से ऑर्डर मिलता था तो बुनकर बावन बूटी बुनाई करते थे। साल 2000 में बिहार राज्य निर्यात निगम को बंद कर दिया गया। इसके चलते बावन बूटी बुनाई
के कपड़ों का निर्यात बंद हो गया। सुनील कुमार, दयानंद प्रसाद, नसीमउद्दीन अंसारी बताते हैं कि यह कला धार्मिक सौहार्द्र का विशेष नमूना है। पहले सभी धर्म और जाति के लोग मिलकर बावन बूटी बुनाई करते
थे। अब दोबारा बाजार मिलने से माहौल बदलेगा। बुनकरों का कहना है कि हमारे दादा-परदादा भी यह बुनाई करते थे। पहले बावन बूटी वाली चादरें, पर्दा, टेबल क्लॉथ, तौलियों का जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया,
अमेरिका में निर्यात होता था। जर्मनी में सबसे ज्यादा मांग थी। साल 2000 के बाद से हमें समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। क्या है बावन बूटी बुनाई कमल का फूल, पीपल का पत्ता, बोधि वृक्ष, बैल,
त्रिशूल, सुनहरी मछली, धर्म का पहिया, खजाना फूलदान, पारसोल और शंख सिर्फ बुद्धिज्म के प्रतीक चिह्न नहीं हैं बल्कि देश-विदेश में बुद्धिज्म की महानता बताने की एक कला भी है। इसी का नाम है बावन
बूटी बुनाई। नालंदा की शान कही जाने वाली बावन बूटी में इन्ही चिह्नों का इस्तेमाल किया जाता है। पहले पूरे एशिया में इसकी पहचान थी। बुनकर लाखो देवी का कहना है कि बौद्ध धर्म मानने वाले देशों में
बावन बूटी कला की काफी मांग है। नालंदा के बुनकरों से संपर्क किया गया है। चादर, तकिया का कवर और पर्दे बनाने का ऑर्डर दिया गया है। समस्या उनके पैन नंबर और जीएसटी को लेकर आ रही है, जिसका
समाधान जल्द कर लिया जाएगा। -दीपक कुमार, बिहार हेड, अमेजॉन कला हाट