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अखिलेश और शिवपाल यादव के लिए अपना पूरा दमखम निकाय चुनाव में दिखाने का अवसर जल्द आने वाला है। पार्टी की कोशिश है कि अब इस चाचा-भतीजे की जोड़ी के जरिए इस मिनी चुनाव में बढ़त हासिल की जाए।
मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव में डिंपल यादव की प्रचंड जीत सुनिश्चित करने के बाद अखिलेश और शिवपाल यादव के लिए अपना पूरा दमखम निकाय चुनाव में दिखाने का अवसर जल्द आने वाला है। पार्टी की कोशिश
है कि अब इस चाचा-भतीजे की जोड़ी के जरिए इस मिनी चुनाव में बढ़त हासिल की जाए। मैनपुरी और खतौली की जीत से मिली ऊर्जा को कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में लगाया जाए। पर इस मुहिम में कई पेंच भी
हैं। एकजुटता का संदेश नीचे भी जाए बिना अपेक्षित कामयाबी संभव नहीं है। शिवपाल के अपने लोगों का सपा में कितना और कहां तक बेहतर समायोजन हो सकता है, यह सवाल है। सपा के कई नेता शिवपाल के खिलाफ भी
मुहिम चलाते रहे हैं, उन्हें भी अब यह सब बंद करना होगा। शिवपाल यादव के लिए मुश्किल यह है कि वह सपा कार्यकर्ताओं में तो पहले की तरह घुलमिल जाएंगे क्योंकि अधिकांश से उनका जुड़ाव पहले जैसे होने
में वक्त नहीं लगेगा लेकिन पदाधिकारी या बड़े नेता असहज हो सकते हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अखिलेश खुद शिवपाल को किस भूमिका में रखना चाहेंगे और उन्हें कितने अधिकार संपन्न करेंगे। सपा में
दो-दो पावर सेंटर बनने की नौबत न आए, अखिलेश की अपेक्षा तो अपने चाचा से होगी ही। हालांकि शिवपाल उनके नेतृत्व में काम करने, मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें स्वीकार करने, मुलायम के एकमात्र
उत्तराधिकारी मानने जैसी बात कह चुके हैं ताकि कोई संशय न रहे पर सपा में एक लाबी इस नए घटनाक्रम को लेकर सहज नहीं दिखती। पांच साल पहले नवंबर में हुए निकाय चुनाव में सपा में शिवपाल अलग थलग पड़
गए थे। सपा ने उनके सहयोग के बिना चुनाव लड़ा। मेयर चुनाव में उसका खाता नहीं खुला। भाजपा ने बाजी मार ली थी। शिवपाल यादव ने उपचुनाव में ताकत दिखा कर खुद को सपा के लिए उपयोगी साबित किया है।
शिवपाल के आवास से प्रसपा का बोर्ड हटा शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी का विलय सपा में करने के बाद अपने सरकारी आवास से प्रसपा कार्यालय का बोर्ड भी हटा दिया है। यहां आवास व शिविर कार्यालय लिख दिया
गया है। शिवपाल को विधायक होने के नाते प्रदेश सरकार ने माल एवेन्यू में सरकारी आवास के रूप में विशाल बंगला आवंटित किया था।