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रामलीला के छठे दिन अयोध्या से बारात प्रस्थान तथा जनकपुर में मंत्रोच्चार और पूर्ण विधि विधान के साथ श्रीराम जानकी विवाह कराया गया। इस दौरान पूरा नगर बराती बन श्रीराम के विवाह का गवाह बना।
राजा जनक... __ रामलीला के छठे दिन अयोध्या से बारात प्रस्थान तथा जनकपुर में मंत्रोच्चार और पूर्ण विधि विधान के साथ श्रीराम जानकी विवाह कराया गया। इस दौरान पूरा नगर बराती बन श्रीराम के विवाह
का गवाह बना। राजा जनक द्वारा भेजा गया दूत सर्वप्रथम अयोध्या पहुंचकर श्रीराम द्वारा शिव धनुष तोड़े जाने तथा जानकी के साथ विवाह संबंधी सूचना दी। दूत राजा दशरथ से जनकपुर बारात ले चलने का आग्रह
किया। राजा दशरथ यह सुनकर अति प्रसन्न हुए और समस्त नगरवासियों को बारात में चलने का आग्रह किया। धूमधाम से बारात निकली। एक रथ पर गुरु वशिष्ठ, दूसरे रथ पर राजा दशरथ अपने मंत्री सुमन के साथ
विराजमान हुए। भरत व शत्रुघ्न घोड़े पर सवार होकर चले तो उनके पीछे समस्त नगरवासी झूमते नाचते चल पड़े। राजशी वस्त्रधारी बैंड पार्टी की धुन पर सभी नगरवासी नाचने लगे। जलपान के लिए बारात ने हनुमान
मंदिर पर विराम लिया। फिर जनकपुर स्थित जनवासे के लिए प्रस्थान किया। राजा जनक ने स्वयं बारात की अगवानी की। इसके बाद चारों भाई दूल्हा बने। भगवान शंकर बैल पर बैठकर माता पार्वती के साथ बारात में
आए। चारों भाइयों को विवाह मंडप में एक साथ बैठा देख अयोध्या व जनकपुरवासी अभिभूत हो उठे। लक्ष्मण का परिणय उर्मिला से, भरत का मांडवी से तथा शत्रुघ्न का ऋतुकीर्ति से एक ही मंडप में पूरे विधि
विधान से हुआ। विवाह के उपरांत वहां मौजूद अयोध्या नरेश राजा दशरथ तथा राजा जनक द्वारा चारों जोड़ों को आशीर्वाद दिया। स्वर्गलोक से सभी देवों ने पुष्पवर्षा की। इसके बाद लीला की आरती के साथ लीला
को विश्राम दिया गया।