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कई बार प्रजनन के लिए शुक्राणुओं को संरक्षित रखा जाता है। लेकिन अगर दशकों तक शुक्राणु को संरक्षित रखा जाए और फिर इसका इस्तेमाल किया जाए तो क्या यह असरदार साबित होगा? इस सवाल का जवाब ढूंढने के
लिए चिकित्सकों ने एक प्रयोग किया और इसका जवाब बेहद चौंकाने वाला साबित हुआ। सन् 1968 में यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी, ऑस्ट्रेलिया के एक रिसर्चर स्टीवन सालोमोन ने भेड़ के शुक्राणु संरक्षित किए थे।
उन्होंने उस वक्त इन शुक्राणुओं को छर्रो के फॉम में संरक्षित किया था। इन शुक्राणुओं को माइन्स 196 डिग्री सेल्सियस में नाइट्रोजन लिक्विड के साथ संरक्षित किया गया था। इन शुक्राणुओं को संरक्षित
करने के पीछे प्रयोगकर्ता का मकसद यह जानना था कि क्या कई सालों बाद भी यह शुक्राणु सही तरीके से काम करते हैं? इस प्रयोग के नतीजे काफी चौंकाने वाले आए हैं। करीब 50 साल पहले रखे गए शुक्राणुओं का
असर 12 महीने पहले संरक्षित किए गए शुक्राणुओं से कहीं ज्यादा रहा। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के एक रिसर्चर सिमोन डी ग्राफ ने बताया कि नतीजे यह बताते हैं कि 50 साल पहले संरक्षित किए गए शुक्राणुओं
में प्रजनन क्षमता बरकार है। इन शुक्राणुओं को दुनिया का सबसे पुराना और संरक्षित सीमेन माना जा रहा है। इन शुक्राणुओं से करीब 34 भेड़ें प्रेग्नेंट हो गईं। इन शुक्राणुओं का इस्तेमाल कुल 56
भेड़ों पर किया गया था। वहीं इस प्रयोग के दौरान 19 Sires से लिए गए सीमेन का इस्तेमाल 1048 मादाओं को प्रेग्नेंट करने के लिए किया गया था। इसमे से 618 मादाएं प्रेग्नेंट हुईं। इस प्रयोग से पता
चला कि हाल में लिए गए शुक्राणुओं में प्रजनन दर 61 प्रतिशत है जबकि 50 साल पहले के सीमेन में प्रजनन दर 59 प्रतिशत है। यह नतीजे इसलिए भी अहम हैं क्योंकि अगर कोई कैंसर का मरीज रेडिएशन ट्रीटमेंट
शुरू होने से पहले अपने सीमेन को बचाना चाहता है तो यह उसके लिए एक बड़ा रास्ता हो सकता है। इससे उनके पास भविष्य में पिता बनने का मौका मिल सकता है।