56 भोग चढ़ाकर भक्तों ने शक्तिपीठ बड़ी माता को किया प्रसन्न

56 भोग चढ़ाकर भक्तों ने शक्तिपीठ बड़ी माता को किया प्रसन्न

Play all audios:

Loading...

MOHOBA NEWS - शारदीय नवरात्र पर्व को लेकर भक्तों में गजब का उत्साह देखा जा रहा है। शक्तिपीठ बड़ी माता मंदिर में दर्शन करने को भक्तों का तांता लग रहा है। रविवार की रात भक्तों ने 56 भोग चढ़ाकर


बड़ी माता को प्रसन्न किया... हिन्दुस्तान टीम महोबाMon, 15 Oct 2018 11:13 PM Share Follow Us on __ शारदीय नवरात्र पर्व को लेकर भक्तों में गजब का उत्साह देखा जा रहा है। शक्तिपीठ बड़ी माता मंदिर


में दर्शन करने को भक्तों का तांता लग रहा है। रविवार की रात भक्तों ने 56 भोग चढ़ाकर बड़ी माता को प्रसन्न किया और मनवांछित मुरादे मांगी। इसके अलावा पार्वती-शंकर की बारात में भक्त शामिल होकर


मंदिर पहुंचे। सुरक्षा-व्यवस्था की दृष्टि से पुलिस बल तैनात रहा। नगर के मातनपुरा मोहल्ले में शक्तिपीठ बड़ी माता का प्राचीन मंदिर भक्तों की आस्था का केन्द्र बना है। नवरात्र पर्व के चलते 9 दिन


यहां भक्तों का मेला लगता है और मां के दर्शन कर भक्त मनोकामनाएं मांगते हैं। रविवार की रात भगवान शंकर व पार्वती की बारात निकाली गई। जिसमें सैकड़ों की संख्या में महिला-पुरुष व बच्चे शामिल होते


हुए मंदिर प्रांगण पहुंचे। जहां बड़ी माता को प्रसन्न करने के लिए भक्तों ने 56 भोग का प्रसाद अर्पण किया। इसके अलावा मंदिर में 51 फिट ऊंची बनी सुरई भी आकर्षण का केन्द्र बनी है। कमेटी के सदस्यों


द्वारा भक्तों का प्रसाद भी वितरण किया गया। सुरक्षा-व्यवस्था की दृष्टि से खासा पुलिस बल तैनात रहा। इसके अलावा पंडालो में भी मां के जयकारे गूंज रहे हैं। सुबह-शाम हो रही पूजा-अर्चना में भक्त


उमड़ रहे हैं। नवरात्र के छठवे दिन सोमवार को मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा अर्चना की गई। कत नामक महर्षि के पुत्र ऋषि कात्य ने भगवती पराम्बा की उपासना कर उनसे घर में पुत्री के रूप में


जन्म लेने की प्रार्थना की थी। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी। इन्हीं कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। कुछ काल के बाद दानव महिषासुर का अत्याचार


पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण


से यह कात्यायनी कहलाई।